सुप्रीम कोर्ट में यह मामला हरियाणा-गुड़गांव के बाजिदपुर तहसील के गढ़ी गांव से आया था. केस के मुताबिक गढ़ी गांव में बदलू की कृषि भूमि थी. बदलू के दो बेटे थे बाली राम और शेर सिंह. शेर सिंह की वर्ष 1953 में मृत्यु हो गई. उसके कोई संतान नहीं थी. शेर सिंह के मरने के बाद उसकी विधवा जगनो को पति के हिस्से की आधी कृषि भूमि पर उत्तराधिकार मिला. जगनो ने फैमिली सेटलमेंट में अपने हिस्से की जमीन अपने भाई के बेटों को दे दी. जगनो के भाई के बेटों ने बुआ से पारिवारिक सेटलमेंट में मिली जमीन पर दावे का कोर्ट में सूट फाइल किया।
इस मुकदमे में जगनों ने एक लिखित बयान दाखिल कर भाई के बेटों के मुकदमे का समर्थन किया और कोर्ट ने समर्थन बयान आने के बाद भाई के बेटों के हक में 19 अगस्त 1991 को जमीन पर उनके हक़ में डिक्री पारित कर दी. इसके बाद जगनों के देवर बाली राम के बच्चों ने अदालत में मुकदमा दाखिल कर पारिवारिक समझौते में जगनों के अपने भाई के बेटों को परिवार की पुश्तैनी जमीन देने का विरोध किया. देवर के बच्चों ने कोर्ट से 19 अगस्त 1991 का आदेश रद करने की मांग करते हुए दलील दी कि पारिवारिक समझौते में बाहरी लोगों को परिवार की जमीन नहीं दी जा सकती है. उनका कहना था कि जगनों के भाई के बेटे जगनों के परिवार के सदस्य नहीं माने जाएंगे.
लेकिन निचली अदालत से लेकर हाईकोर्ट तक से यह मुकदमा खारिज होने के बाद देवर के बच्चे खुशी राम व अन्य सुप्रीम कोर्ट पहुंचे. सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न पूर्व फैसलों में सभी पहलुओं पर विचार किया और अपने जजमेंट में कहा – परिवार को सीमित नजरिये से नहीं देखा जाना चाहिए बल्कि व्यापक रूप में लिया जाना चाहिए. परिवार मे सिर्फ नजदीकी रिश्तेदार या उत्तराधिकारी ही नहीं आते बल्कि वे लोग भी आते हैं जिनका थोड़ा भी मालिकाना हक बनता हो या जो थोड़ा भी हक का दावा कर सकते हों.
कोर्ट ने कहा कि इस मामले में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 की धारा 15 को देखा जाना चाहिए जिसमें हिंदू महिला के उत्तराधिकारियों का वर्णन है. इस धारा 15(1)(डी) में महिला के पिता के उत्तराधिकारियों को भी शामिल किया गया है. वे लोग भी उत्तराधिकार प्राप्त कर सकते हैं. कोर्ट ने कहा कि जब पिता के उत्तराधिकारी उन लोगों में शामिल किए गए हैं जिन्हें उत्तराधिकार मिल सकता है तो फिर ऐसे में जगनो के भाई और उसके बच्चों को बाहरी नहीं कहा जा सकता.
उत्तराधिकार पर सुप्रीम कोर्ट का यह बड़ा फैसला है जिसमें एक हिन्दू महिला का मायका पक्ष भी परिवार का हिस्सा बताया गया है. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने जगनो के देवर के बच्चों की याचिका खारिज कर दी है जिसमें जगनो द्वारा अपने भाई के बच्चों को संपत्ति दिये जाने को चुनौती दी गई थी. इस याचिका में पारिवारिक सेटलमेंट में परिवार के बाहर के लोगों को संपत्ति दिए जाने की डिक्री रद करने की मांग की गई थी. संपत्ति उत्तराधिकार मामले में यह महत्वपूर्ण फैसला जस्टिस अशोक भूषण व जस्टिस आर.सुभाष रेड्डी की पीठ ने हाईकोर्ट और निचली अदालत के फैसलों को सही ठहराते हुए 22 फरवरी को सुनाया.
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